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शेर
पैग़ाम-ए-लुत्फ़-ए-ख़ास सुनाना बसंत का
दरिया-ए-फ़ैज़-ए-आम बहाना बसंत का
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
क्या क्या हैं दर्द-ए-इश्क़ की फ़ित्ना-तराज़ियाँ
हम इल्तिफ़ात-ए-ख़ास से भी बद-गुमाँ रहे
असग़र गोंडवी
शेर
हम सरगुज़िश्त क्या कहें अपनी कि मिस्ल-ए-ख़ार
पामाल हो गए तिरे दामन से छूट कर
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
शेर
'उम्र सारी तो कटी 'इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन'
आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे