aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "utre.n"
हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैंउम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में
हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठेंवो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं
कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाएतुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए
आगही कर्ब वफ़ा सब्र तमन्ना एहसासमेरे ही सीने में उतरे हैं ये ख़ंजर सारे
हमेशा आग के दरिया में इश्क़ क्यूँ उतरेकभी तो हुस्न को ग़र्क़-ए-अज़ाब होना था
इक दनदनाती रेल सी उम्रें गुज़र गईंदो पटरियों के बीच वही फ़ासले रहे
मसीह-ओ-ख़िज़्र की उम्रें निसार हों उस परवो एक लम्हा जो यारों के दरमियाँ गुज़रे
साहिल पे लोग यूँही खड़े देखते रहेदरिया में हम जो उतरे तो दरिया उतर गया
गुज़रे हज़ार बादल पलकों के साए साएउतरे हज़ार सूरज इक शह-नशीन-ए-दिल पर
हम उन की आस पे उम्रें गुज़ार देते हैंवो मो'जिज़े जो कभी रूनुमा नहीं होते
वो जिन दरख़्तों की छाँव में से मुसाफ़िरों को उठा दिया थाउन्हीं दरख़्तों पे अगले मौसम जो फल न उतरे तो लोग समझे
दिलों को तेरे तबस्सुम की याद यूँ आईकि जगमगा उठें जिस तरह मंदिरों में चराग़
एक दिन सुब्ह जो उट्ठें तो ये दुनिया ही न होहै मदार अब किसी ऐसी ही ख़ुश-इम्कानी पर
दालान में सब्ज़ा है न तालाब में पानीक्यूँ कोई परिंदा मिरी दीवार पे उतरे
मुझे रहने को वो मिला है घर कि जो आफ़तों की है रहगुज़रतुम्हें ख़ाकसारों की क्या ख़बर कभी नीचे उतरे हो बाम से
उतरे थे मैदान में सब कुछ ठीक करेंगेसब कुछ उल्टा सीधा कर के बैठ गए हैं
ख़ुदा मालूम किस आवाज़ के प्यासे परिंदेवो देखो ख़ामुशी की झील में उतरे परिंदे
ढली जो शाम तो मुझ में सिमट गया जैसेक़रार पाने समुंदर में आफ़्ताब उतरे
घटती बढ़ती रही परछाईं मिरी ख़ुद मुझ सेलाख चाहा कि मिरे क़द के बराबर उतरे
इस्तिआरे ज़मीन से जाएँइक ग़ज़ल आसमान से उतरे
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