aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "vafaa-e-vaada-o-paimaa.n"
यक़ीन-ए-वा'दा-ए-फ़र्दा हमें बावर नहीं आताज़बाँ से लाख कहिए आप के तेवर नहीं कहते
वादा-ए-बादा-ए-अतहर का भरोसा कब तकचल के भट्टी पे पिएँ जुर'आ-ए-इरफ़ाँ कैसा
अहल-ए-वफ़ा से तर्क-ए-तअल्लुक़ कर लो पर इक बात कहेंकल तुम इन को याद करोगे कल तुम इन्हें पुकारोगे
जिंस-ए-वफ़ा का दहर में बाज़ार गिर गयाजब इश्क़ फ़ैज़-ए-हुस्न का हामिल नहीं रहा
पूरा करेंगे होली में क्या वादा-ए-विसालजिन को अभी बसंत की ऐ दिल ख़बर नहीं
उस बेवफ़ा से कर के वफ़ा मर-मिटा 'रज़ा'इक क़िस्सा-ए-तवील का ये इख़्तिसार है
इक लफ़्ज़ याद था मुझे तर्क-ए-वफ़ा मगरभूला हुआ हूँ ठोकरें खाने के बअ'द भी
अपना दुश्मन हो अगर कुछ है शुऊरइंतिज़ार-ए-वादा-ए-फ़र्दा न कर
किसी के वादा-ए-सब्र-आज़मा की ख़ैर कि हमअब ए'तिबार की हद से गुज़रते जाते हैं
शोर-ए-दरिया-ए-वफ़ा इशरत-ए-साहिल के क़रीबरुक गए अपने क़दम आए जो मंज़िल के क़रीब
भूलने वाले को शायद याद वादा आ गयामुझ को देखा मुस्कुराया ख़ुद-ब-ख़ुद शरमा गया
मुझे है ए'तिबार-ए-वादा लेकिनतुम्हें ख़ुद ए'तिबार आए न आए
आता है तो आ वादा-फ़रामोश वगर्नाहर रोज़ का ये लैत-ओ-ल'अल जाए तो अच्छा
वादा-ए-वस्ल गर किसी से नहींआप क्यूँ बे-क़रार फिरते हैं
फिर बैठे बैठे वादा-ए-वस्ल उस ने कर लियाफिर उठ खड़ा हुआ वही रोग इंतिज़ार का
अब वादा-ए-फ़र्दा में कशिश कुछ नहीं बाक़ीदोहराई हुई बात गुज़रती है गिराँ और
वाए नाकामी तब आया साक़ी-ए-पैमाँ-शिकनजब हमारी उम्र का लबरेज़ साग़र हो गया
शिकस्त-ए-व'अदा की महफ़िल अजीब थी तेरीमिरा न होना था बरपा तिरे न आने में
ख़याल-ए-वादा तिरा बस-कि शब नज़र में रहातमाम रात मिरा जी सदा-ए-दर में रहा
इस तरह ख़ुश हूँ किसी के वादा-ए-फ़र्दा पे मैंदर-हक़ीक़त जैसे मुझ को ए'तिबार आ ही गया
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