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शेर
दिल के आईने की हम लेते हैं तब है है ख़बर
इस पे जब दो दो वजब ये ज़ंग-ए-ग़म चढ़ जाए है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
मिट्टी की मोहब्बत में हम आशुफ़्ता-सरों ने
वो क़र्ज़ उतारे हैं कि वाजिब भी नहीं थे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
शेर
उस से यही कहता हूँ वाजिब एहतिराम-ए-इश्क़ है
अंदर से ये ख़्वाहिश है वो जैसा कहे वैसा करूँ
वारिस किरमानी
शेर
यही इंसाफ़ तिरे अहद में है ऐ शह-ए-हुस्न
वाजिब-उल-क़त्ल मोहब्बत के गुनहगार हैं सब