aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "vasma"
मेहराब-ए-अबरुवाँ कूँ वसमा हुआ है ज़ेवरक्यूँ कर कहें न उन कूँ अब ज़ीनतुल-मसाजिद
कैसे कहें कि तुझ को भी हम से है वास्ता कोईतू ने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया
न ग़रज़ किसी से न वास्ता मुझे काम अपने ही काम सेतिरे ज़िक्र से तिरी फ़िक्र से तिरी याद से तिरे नाम से
मिरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का अलम नहींजिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं
बड़ा वसीअ है उस के जमाल का मंज़रवो आईने में तो बस मुख़्तसर सा रहता है
ये शफ़क़ चाँद सितारे नहीं अच्छे लगतेतुम नहीं हो तो नज़ारे नहीं अच्छे लगते
वक़्त ख़ामोश है टूटे हुए रिश्तों की तरहवो भला कैसे मिरे दिल की ख़बर पाएगा
यही फ़साना रहा है जुनूँ के सहरा मेंकभी फ़िराक़ के क़िस्से कभी विसाल की बात
शिकस्ता-दिल अँधेरी शब अकेला राहबर क्यूँ होन हो जब हम-सफ़र कोई तो अपना भी सफ़र क्यूँ हो
किताब-ए-ज़ीस्त का उनवान बन गए हो तुमहमारे प्यार की देखो ये इंतिहा साहब
आप का लहजा शहद जैसा तरन्नुम-ख़ेज़ हैख़ामुशी अब तोड़िए और बोलिए मेरे लिए
जो हर क़दम पे मिरे साथ साथ रहता थाज़रूर कोई न कोई तो वास्ता होगा
हमें दुनिया में अपने ग़म से मतलबज़माने की ख़ुशी से वास्ता क्या
अभी से कैसे कहूँ तुम को बेवफ़ा साहबअभी तो अपने सफ़र की है इब्तिदा साहब
तुम्हारे बिना सब अधूरे हैं जानाँसबा फूल ख़ुश-बू चमन रौशनी रंग
रौशनी फूट निकली मिसरों सेचाँद को जब ग़ज़ल में सोचा है
शाख़-दर-शाख़ होती है ज़ख़्मीजब परिंदा शिकार होता है
उस अजनबी से वास्ता ज़रूर था कोईवो जब कभी मिला तो बस मिरा लगा मुझे
सिला दिया है मोहब्बत का तुम ने ये कैसामसर्रतों में भी रोने लगी हैं अब आँखें
माना कि तेरा मुझ से कोई वास्ता नहींमिलने के ब'अद मुझ से ज़रा आइना भी देख
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