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शेर
बाद-ए-शब-ए-विसाल न देखूँ मैं दाग़-ए-हिज्र
या-रब चराग़-ए-उम्र बुझा दे हवा-ए-सुब्ह
लाला माधव राम जौहर
शेर
मैं तिरी राह-ए-तलब में ब-तमन्ना-ए-विसाल
महव ऐसा हूँ कि मिटने का भी कुछ ध्यान नहीं
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
शब भर शब-ए-विसाल रहा चाँदनी का लुत्फ़
सोया लिपट के वो मह-ए-ताबाँ तमाम रात