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शेर
मेहनत कर के हम तो आख़िर भूके भी सो जाएँगे
या मौला तू बरकत रखना बच्चों की गुड़-धानी में
विलास पंडित मुसाफ़िर
शेर
सिर्फ़ शिकवे दिख रहे हैं ये नहीं दिखता तुझे
तुझ से शिकवे रखने वाला तेरा दीवाना भी है
विक्रम गौर वैरागी
शेर
रोज़ ही पीना रोज़ पिलाना रोज़ ग़मों से टकराना
इक दिन मय को भूल के आओ गंगा-जल की बात करें
विलास पंडित मुसाफ़िर
शेर
पियाला ज़हर का लाए हो पीने क्यों नहीं देते
मिरे मरने पे रोना है तो जीने क्यों नहीं देते
ज्ञानेंद्र विक्रम
शेर
वस्ल के दो-चार लम्हे रोज़ गिन गिन देखना
रह गया था ज़िंदगी में क्या यही दिन देखना
ज्ञानेंद्र विक्रम
शेर
ख़्वाब में चूमा था तुम ने और तब से आज तक
घेर लेती हैं मुझे हर गुलसिताँ की तितलियाँ