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शेर
और क्या इस से ज़ियादा कोई नर्मी बरतूँ
दिल के ज़ख़्मों को छुआ है तिरे गालों की तरह
जाँ निसार अख़्तर
शेर
इलाही क्या इलाक़ा है वो जब लेता है अंगड़ाई
मिरे सीने में सब ज़ख़्मों के टाँके टूट जाते हैं
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
एक मैं हूँ कि इस आशोब-ए-नवा में चुप हूँ
वर्ना दुनिया मिरे ज़ख़्मों की ज़बाँ बोलती है
इरफ़ान सिद्दीक़ी
शेर
नमक भर कर मिरे ज़ख़्मों में तुम क्या मुस्कुराते हो
मिरे ज़ख़्मों को देखो मुस्कुराना इस को कहते हैं
बेख़ुद देहलवी
शेर
फ़िक्र तेरी ठीक पर मेरी अना का भी तो सोच
दूर से बस देख ले ज़ख़्मों को मेरे छू नहीं