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शेर
दर्द उल्फ़त का न हो तो ज़िंदगी का क्या मज़ा
आह-ओ-ज़ारी ज़िंदगी है बे-क़रारी ज़िंदगी
ग़ुलाम भीक नैरंग
शेर
बे-ज़री फ़ाक़ा-कशी मुफ़्लिसी बे-सामानी
हम फ़क़ीरों के भी हाँ कुछ नहीं और सब कुछ है
नज़ीर अकबराबादी
शेर
किस को उस का ग़म हो जिस दम ग़म से वो ज़ारी करे
हाँ मगर तेरा ही ग़म आशिक़ की ग़म-ख़्वारी करे
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
रंज-ओ-ग़म ठोकरें मायूसी घुटन बे-ज़ारी
मेरे ख़्वाबों की ये ता'बीर भी हो सकती है