aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "zahiin"
माना कि तू ज़हीन भी है ख़ूब-रू भी हैतुझ सा न मैं हुआ तो भला क्या बुरा हुआ
'शुऊर' ख़ुद को ज़हीन आदमी समझते हैंये सादगी है तो वल्लाह इंतिहा की है
ख़ुश-शक्ल भी है वो ये अलग बात है मगरहम को ज़हीन लोग हमेशा पसंद थे
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसेतेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे
ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मींपाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलताकहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता
आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता हैभूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है
इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहींदो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद
आशिक़ी से मिलेगा ऐ ज़ाहिदबंदगी से ख़ुदा नहीं मिलता
तुम आ गए हो तो कुछ चाँदनी सी बातें होंज़मीं पे चाँद कहाँ रोज़ रोज़ उतरता है
अपना रिश्ता ज़मीं से ही रक्खोकुछ नहीं आसमान में रक्खा
ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ करया वो जगह बता दे जहाँ पर ख़ुदा न हो
प्यासो रहो न दश्त में बारिश के मुंतज़िरमारो ज़मीं पे पाँव कि पानी निकल पड़े
ज़ाहिद शराब पीने से काफ़िर हुआ मैं क्यूँक्या डेढ़ चुल्लू पानी में ईमान बह गया
कितना है बद-नसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिएदो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में
महक रही है ज़मीं चाँदनी के फूलों सेख़ुदा किसी की मोहब्बत पे मुस्कुराया है
हुए नामवर बे-निशाँ कैसे कैसेज़मीं खा गई आसमाँ कैसे कैसे
जब मैं चलूँ तो साया भी अपना न साथ देजब तुम चलो ज़मीन चले आसमाँ चले
कहीं ज़मीं से तअल्लुक़ न ख़त्म हो जाएबहुत न ख़ुद को हवा में उछालिए साहिब
मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठेमिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले
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