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शेर
तुझ से बिछड़ूँ तो तिरी ज़ात का हिस्सा हो जाऊँ
जिस से मरता हूँ उसी ज़हर से अच्छा हो जाऊँ
अहमद कमाल परवाज़ी
शेर
मैं अपने लफ़्ज़ यूँ बातों में ज़ाए कर नहीं सकता
मुझे जो कुछ भी कहना है उसे शेरों में कहता हूँ
भारत भूषण पन्त
शेर
पियाला ज़हर का लाए हो पीने क्यों नहीं देते
मिरे मरने पे रोना है तो जीने क्यों नहीं देते
ज्ञानेंद्र विक्रम
शेर
जोर्ज पेश शोर
शेर
किस को उस का ग़म हो जिस दम ग़म से वो ज़ारी करे
हाँ मगर तेरा ही ग़म आशिक़ की ग़म-ख़्वारी करे