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शेर
तिरी महफ़िल में फ़र्क़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ कौन देखेगा
फ़साना ही नहीं कोई तो उनवाँ कौन देखेगा
अज़ीज़ वारसी
शेर
दयार-ए-इश्क़ आया कुफ़्र-ओ-ईमाँ की हदें छूटीं
यहीं से और पैदा कर ख़ुदा ओ अहरमन कोई
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
कुफ़्र-ओ-ईमाँ से है क्या बहस इक तमन्ना चाहिए
हाथ में तस्बीह हो या दोश पर ज़ुन्नार हो
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
कुफ्र-ओ-इस्लाम में तौलें जो हक़ीक़त तेरी
बुत-कदा क्या कि हरम संग-ए-तराज़ू हो जाए