aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "zii-ruuh"
था रू-ए-ज़मीं तंग ज़ि-बस हम ने निकालीरहने के लिए शेर के आलम में ज़मीं और
दर्द की धूप ढले ग़म के ज़माने जाएँदेखिए रूह से कब दाग़ पुराने जाएँ
हुआ न क़ुर्ब-ए-तअ'ल्लुक़ का इख़तिसास यहाँये रू-शनास ज़ि-राह-ए-बईदा आया था
कल रात भी इक चेहरा हमराह मिरे जागाकल रात भी रह-रह कर दीवार लगीं आँखें
जंग में क़त्ल सिपाही होंगेसुर्ख़-रू ज़िल्ल-ए-इलाही होंगे
अगर ये ज़िद है कि मुझ से दुआ सलाम न होतो ऐसी राह से गुज़रो जो राह-ए-आम न हो
हरीम-ए-दिल में ठहर या सरा-ए-जान में रुकये सब मकान हैं तेरे किसी मकान में रुक
उन कही बात के सौ रूप कही बात का एककभी सुन वो भी जो मिन्नत-कश-ए-गोयाई नहीं
बद-दुआ' अपने लिए की तो बहुत थी मैं नेहाँ मगर राह में हाइल जो दुआ थी तेरी
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