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शेर
रहने दे ज़िक्र-ए-ख़म-ए-ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल को नदीम
उस के तो ध्यान से भी होता है दिल को उलझाओ
दत्तात्रिया कैफ़ी
शेर
मय-ख़ाने में क्यूँ याद-ए-ख़ुदा होती है अक्सर
मस्जिद में तो ज़िक्र-ए-मय-ओ-मीना नहीं होता
रियाज़ ख़ैराबादी
शेर
हम को भी क्या क्या मज़े की दास्तानें याद थीं
लेकिन अब तमहीद-ए-ज़िक्र-ए-दर्द-ओ-मातम हो गईं
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
शेर
ये क्या है कि ज़िक्र-ए-ग़म-ए-अय्याम बहुत है
शीशे में अभी तो मय-ए-गुलफ़ाम बहुत है
वफ़ा शाहजहाँ पुरी
शेर
हनीफ़ अख़गर
शेर
बोसा-ए-सब्ज़ा-ए-ख़त दे के गुनहगार किया
तू ने काँटों में मुझे ऐ गुल-ए-रअना खींचा