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शेर
इक टीस जिगर में उठती है इक दर्द सा दिल में होता है
हम रात को रोया करते हैं जब सारा आलम सोता है
ज़िया अज़ीमाबादी
शेर
मुझ में थोड़ी सी जगह भी नहीं नफ़रत के लिए
मैं तो हर वक़्त मोहब्बत से भरा रहता हूँ