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ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
صدائے لن تراني سن کے اے اقبال ميں چپ ہوں
تقاضوں کي کہاں طاقت ہے مجھ فرقت کے مارے ميں
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अरिनी ओ लन-तरानी का सब राज़ खुल गया
क्या नश्शा-ए-ग़रीब है शर्ब-उल-यहूद में
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
कुछ तबस्सुम ज़ेर-ए-लब पर शर्म दामन-गीर है
उफ़ ये किस आलम में खिंचवाई हुई तस्वीर है
शकील बदायूनी
तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
हास्य
इम्तिहाँ हम ने दिए हैं नौजवानी में बहुत
और नंबर ले चुके हैं लन-तरानी में बहुत