aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "لنگر"
इस पर सुल्ताना ने कहा, “ये मैंने इसलिए कहा कि आप देर तक वहीं खड़े रहे और फिर कुछ सोच कर इधर आए।” वो ये सुन कर फिर मुस्कुराया, “तुम्हें ग़लतफ़हमी हुई। मैं तुम्हारे ऊपर वाले फ़्लैट की तरफ़ देख रहा था। वहां कोई औरत खड़ी एक मर्द को ठेंगा...
हैदराबाद और लंगर याद हैअब के दिल्ली में मोहर्रम क्या करें
शाम को ये फ़क़ीर कहीं से माँग-ताँग कर मिट्टी के दो दीए और सरसों का तेल ले आया और पीर कड़क शाह की क़ब्र के सिरहाने और पाइंती चराग़ रौशन कर दिए। रात को पिछले पहर कभी-कभी उस मज़ार से अल्लाह-हू का मस्त नारा सुनाई दे जाता। छः महीने गुज़रने...
لنگر نہ ٹو جائے زمیں کے جہاز کا 62
करीम दाद इस दफ़ा कुछ देर के बाद मुस्कुराया, “हटाओ उसको। ये बताओ मौसी बख़तो आई थी?” जीनां ने बेदिली से जवाब दिया, “आई थी!”...
अच्छी गुज़र रही है दिल-ए-ख़ुद-कफ़ील सेलंगर से रोटी लेते हैं पानी सबील से
لنگر کا انہیں کیا اشارہخود کشتی سے کر گیا کنارہ
حملہ غضب ہے بازوئے شاہ حجاز کا لنگر نہ ٹوٹ جائے زمین کے جہاز کا...
مصلح وضع جہاں عزت نوع انساںلنگر کشتئ حق ناشر حکم یزداں
یوں گھر الٹ پلٹ تھا امامِ حجاز کاجس طرح ٹوٹ جاتا ہے لنگر جہاز کا
वो मुसलसल बोले जाता और गौतमा अपने मख़मलीं रुख़सार हथेली पर रखे गहरी सियाह और शफ्फ़ाफ़ आँखों पर घनी पलकों का साया किए बुत सी बनी दरख़्तों के ऊपर, नीले आसमान पर परिंदों की अपने रैन बसेरों की तरफ़ लौटती टोलियों को घूरती रहती। उसकी ख़ामोशी एक धुंदले रंग का...
माज़ी के समुंदर में अक्सर यादों के जज़ीरे मिलते हैंफिर आओ वहीं लंगर डालें फिर आओ उन्हें आबाद करें
यूँ तो इल्ज़ाम है तूफ़ाँ पे डुबो देने कातह में दरिया की मगर नाव का लंगर निकला
जलियांवाला बाग़ में ख़ूब रौनक़ थी। चारों तरफ़ तंबू और क़नातें फैली हुई थीं, जो ख़ेमा सब से बड़ा था, उसमें हर दूसरे तीसरे रोज़ एक डिक्टेटर बनाके बिठा दिया जाता था। जिसको तमाम वालंटियर सलामी देते थे। दो-तीन रोज़ या ज़्यादा से ज़्यादा दस-पंद्रह रोज़ तक ये डिक्टेटर खादी...
“आपा, ये फ़िल्म वालियाँ बड़ी छिनाल होती हैं। हर एक से लंगर लड़ाने लगती हैं,” उसने ऐसे भोलेपन से कहा जैसे वो ख़ुद बड़ी पारसा है। “आपा, कोई चटपटी सी कहानी लिक्खो। हम दोनों उसमें मुफ़्त काम करेंगे। मज़ा आ जाएगा उसने चटख़ारा लिया। “सेंसर सब काट देगा।”...
उठा दिया तो है लंगर हवा के झोंकों मेंकिधर सफ़ीना है साहिल कहाँ नहीं मालूम
आदमी ज़हीन हूँ। कोई मसला सामने आ जाए तो उसकी तह तक पहुंचने की कोशिश करता हूँ। कारख़ाने चल रहे थे, दुकानें भी चल रही थीं। रुपया अपने आप पैदा हो रहा था। मैंने अलग थलग हो कर सोचना शुरू किया और बहुत देर के बाद इस नतीजे पर पहुंचा...
इलावा महल्ले के लड़कों बालों के नानी के अज़ली दुश्मन तो मुए निगोड़े बंदर थे जो पीढ़ियों से इसी महल्ले में पलते बढ़ते आए थे। जो हर फ़र्द का कच्चा चिट्ठा जानते थे। मर्द ख़तरनाक होते हैं और बच्चे बदज़ात, औरतें तो सिर्फ डरपोक होती हैं। परनानी भी उन्हीं बंदरों...
एहसान ना-ख़ुदा का उठाए मिरी बलाकश्ती ख़ुदा पे छोड़ दूँ लंगर को तोड़ दूँ
बस एक बार जो लंगर उठे तो फिर क्या थाहवाएँ ताक में थीं जैसे बादबानों की
Jashn-e-Rekhta 10th Edition | 5-6-7 December Get Tickets Here
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books