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ग़ज़ल
वस्ल का मौसम हो तो ये सर्दियाँ ही ठीक हैं
हिज्र में क़ुर्बत की ये परछाइयाँ ही ठीक हैं
ए.आर.साहिल "अलीग"
ग़ज़ल
बिछड़ के भीड़ में ख़ुद से हवासों का वो आलम था
कि मुँह खोले हुए तकती रहीं परछाइयाँ हम को