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ग़ज़ल
अब हुस्न का रुत्बा 'आली है अब हुस्न से सहरा ख़ाली है
चल बस्ती में बंजारा बन चल नगरी में सौदागर हो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
घर से बे-घर हो कर हम तो मारे मारे फिरते हैं
ये बंजारा दिल देखो अब हम को किधर ले जाएगा
जाफ़र अब्बास
ग़ज़ल
हदों को तोड़ गया यूँ ग़रीब बंजारा
कि शाहज़ादी के हाथों में चूड़ियाँ रख दीं
अंश प्रताप सिंह ग़ाफ़िल
ग़ज़ल
कोई न उस का माल ख़रीदे कोई न उस की जानिब देखे
अब बंजारा घूम रहा है क़र्या क़र्या तन्हा तन्हा
ज्ञान चंद जैन
ग़ज़ल
पता कुछ भी नहीं हम को मगर हम सब समझते हैं
किसी बस्ती की ख़ातिर क्यों वो बंजारा तरसता है
वीरेन्द्र खरे अकेला
ग़ज़ल
बेचारे के पाँव कभी दहलीज़ कभी दरवाज़े पर
घूम रहा है घर में बँधा बँधा वो इक बंजारा सा
बिमल कृष्ण अश्क
ग़ज़ल
सर पर आग उगलता सूरज पाँव तले अंगारा देख
अपनी दुनिया पीठ पे लादे निकला इक बंजारा देख
इक़बाल असलम
ग़ज़ल
बरसों से हैं दीदा-वराँ तेरी गली में सरगिराँ
सब कुछ धरा रह जाएगा चल दे जो बंजारा तिरा