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ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
कभी जादा-ए-तलब से जो फिरा हूँ दिल-शिकस्ता
तिरी आरज़ू ने हँस कर वहीं डाल दी हैं बाँहें
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
वो बातें भोली भोली और वो शोख़ी नाज़ ओ ग़म्ज़ा की
वो हँस हँस कर तिरा मुझ को रुलाना याद आता है
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
कुछ गुल ही से नहीं है रूह-ए-नुमू को रग़बत
गर्दन में ख़ार की भी डाले हुए है बाँहें
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
आओ हम तुम इश्क़ के इज़हार की बातें करें
डाल कर बाँहों में बाहें प्यार की बातें करें