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ग़ज़ल
बुलंद हिम्मत से आसमाँ में शिगाफ़ हम से नहीं हुआ है
शिकस्त का भी अभी तलक ए'तिराफ़ हम से नहीं हुआ है
रौनक़ शहरी
ग़ज़ल
गर्मी-ए-इश्क़ के बग़ैर लुत्फ़-ए-हयात राएगाँ
इश्क़ है ज़िंदगी का रूप इश्क़ से ज़िंदगी जवाँ
निहाल सेवहारवी
ग़ज़ल
ज़िया फ़तेहाबादी
ग़ज़ल
उड़ के पहुँचा सर-ए-गर्दूं पे बगूला बन कर
बा'द मिटने के बुलंद उतनी है हिम्मत मेरी
श्याम सुंदर लाल बर्क़
ग़ज़ल
तुझ से बिछड़ कर क्या हूँ मैं अब बाहर आ कर देख
हिम्मत है तो मेरी हालत आँख मिला कर देख