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ग़ज़ल
इरादा था कि मैं कुछ देर तूफ़ाँ का मज़ा लेता
मगर बेचारे दरिया को उतर जाने की जल्दी थी
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग
जो होता है सह लेते हैं कैसे हैं बेचारे लोग
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
कौन ग़ुलाम मोहम्मद 'क़ासिर' बेचारे से करता बात
ये चालाकों की बस्ती थी और हज़रत शर्मीले थे
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
जिन की ज़िंदगी दामन तक है बेचारे फ़रज़ाने हैं
ख़ाक उड़ाते फिरते हैं जो दीवाने दीवाने हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
वोट न बेचें क्यूँ बेचारे बस कम्बल के बदले में
जो सर्दी में अपनी चमड़ी बिस्तर करें लिहाफ़ करें
सरदार पंछी
ग़ज़ल
हमारी दोस्ती को देख कर कुढ़ते हैं बेचारे
जहाँ वालों की ख़ातिर यार ज़हमत हो गए हम तुम
ज़की तारिक़ बाराबंकवी
ग़ज़ल
शाद आरफ़ी
ग़ज़ल
ज़ुबैर फ़ारूक़
ग़ज़ल
शराब पी चुके बे-चारे को इजाज़त दो
खड़ा है देर से रुख़्सत को ऐ निगार लिहाज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
वो रहते हैं जहाँ पर जानते हैं ये जहन्नुम है
मगर बेचारे ग़म के मारे सब फ़िन्नार कह देंगे