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ग़ज़ल
सारे भगवान तिरे हक़ में खड़े रहते हैं
मुझ पे रहता है किसी भूत का साया लाला
राजीव रियाज़ प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
ग़ुस्से में रक़ीब आता है जब भूत सा बन कर
पढ़ता हूँ मैं जब दिल में खड़ा ना'त-ए-अली चुप
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
भूत ख़बीस नाज़नीं गुल परी बला कहूँ
दिल-लगी अच्छी ये नहीं मुझ से हँसा तू कौन है
वाजिद अली शाह अख़्तर
ग़ज़ल
फ़रिश्ता है परी है देव है या आदमी जिन है
बला है भूत है यामुन मज़ूरा या कमीरा है