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ग़ज़ल
जब चाँद उफ़ुक़ पर होता है और तारे झिलमिल करते हैं
आँखों में किसी की भोली भोली शक्ल समाई होती है
तालिब बाग़पती
ग़ज़ल
पस-ए-क़ौस-ए-क़ुज़ह इक सूरत-ए-महताब की झिलमिल
मैं इस झिलमिल को पहरों देखता रहता हूँ बारिश में
ख़ालिद मोईन
ग़ज़ल
आँख बराबर साथ घटा के ख़ूब बरसती है मिल-जुल के
बाहर बूँदें अंदर आँसू सब कुछ झिलमिल हो जाता है
संदीप ठाकुर
ग़ज़ल
शबनम भीगी घास पे चलना कितना अच्छा लगता है
पाँव तले जो मोती बिखरें झिलमिल रस्ता लगता है
प्रकाश फ़िक्री
ग़ज़ल
दर्द की झिल-मिल रौशनियों से बारा ख़्वाब की दूरी पर
हम ने देखी एक धनक जो शोला भी है सदा भी है
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
झिलमिल से क्या रब्त निकालें कश्ती की तक़दीरों का
तारे कश्फ़ नहीं कर सकते बे-आवाज़ जज़ीरों का