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ग़ज़ल
अदू को छोड़ दो फिर जान भी माँगो तो हाज़िर है
तुम ऐसा कर नहीं सकते तो ऐसा हो नहीं सकता
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
मेरा सर हाज़िर है लेकिन मेरा मुंसिफ़ देख ले
कर रहा है मेरी फ़र्द-ए-जुर्म को तहरीर कौन
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
हाज़िर हैं कलीसा में कबाब ओ मय-ए-गुलगूँ
मस्जिद में धरा क्या है ब-जुज़ मौइज़ा ओ पंद
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अज़ाब-ए-दानिश-ए-हाज़िर से बा-ख़बर हूँ मैं
कि मैं इस आग में डाला गया हूँ मिस्ल-ए-ख़लील
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
लबालब शीशा-ए-तहज़ीब-ए-हाज़िर है मय-ए-ला से
मगर साक़ी के हाथों में नहीं पैमाना-ए-इल्ला
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अहद-ए-हाज़िर में उख़ुव्वत का तसव्वुर है मगर
तज़्किरों में काग़ज़ों पर रहबरों के दरमियाँ
बशीर फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
मुझे तहज़ीब-ए-हाज़िर ने अता की है वो आज़ादी
कि ज़ाहिर में तो आज़ादी है बातिन में गिरफ़्तारी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अगर माज़ी मुनव्वर था कभी तो हम न थे हाज़िर
जो मुस्तक़बिल कभी होगा दरख़्शाँ हम नहीं होंगे