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ग़ज़ल
तेज़ हो जाता है ख़ुशबू का सफ़र शाम के बाद
फूल शहरों में भी खिलते हैं मगर शाम के बाद
कृष्ण बिहारी नूर
ग़ज़ल
इक ग़ज़ल उस पे लिखूँ दिल का तक़ाज़ा है बहुत
इन दिनों ख़ुद से बिछड़ जाने का धड़का है बहुत
कृष्ण बिहारी नूर
ग़ज़ल
न झटको ज़ुल्फ़ से पानी ये मोती टूट जाएँगे
तुम्हारा कुछ न बिगड़ेगा मगर दिल टूट जाएँगे
राजेन्द्र कृष्ण
ग़ज़ल
मिरी दास्ताँ मुझे ही मिरा दिल सुना के रोए
कभी रो के मुस्कुराए कभी मुस्कुरा के रोए