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ग़ज़ल
बरतरी इतनी भी अपनी न जता ऐ मिरे इश्क़
तू 'नदीम'-ओ-'ज़की' ओ 'काशिफ़'-ओ-'कामी' तो नहीं
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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बरतरी इतनी भी अपनी न जता ऐ मिरे इश्क़
तू 'नदीम'-ओ-'ज़की' ओ 'काशिफ़'-ओ-'कामी' तो नहीं