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ग़ज़ल
ये मंज़र देख कर साहिल की हैरानी नहीं जाती
मुझे छू कर भी कोई मौज-ए-तूफ़ानी नहीं जाती
अबरार अहमद काशिफ़
ग़ज़ल
बोलने का नहीं चुप रहने का मन चाहता है
ऐसे हालात में तू लुत्फ़-ए-सुख़न चाहता है
अबरार अहमद काशिफ़
ग़ज़ल
वसवसे दिल में न रख ख़ौफ़-ए-रसन ले के न चल
अज़्म-ए-मंज़िल है तो हम-राह थकन ले के न चल
अबरार किरतपुरी
ग़ज़ल
न कुछ मरने का ग़म हो और न कुछ शिकवा हो फ़ुर्क़त का
अगर हालत मिरी वो सय्यद-ए-अबरार आ देखें