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ग़ज़ल
चश्म-ए-हैरत को त’अल्लुक़ की फ़ज़ा तक ले गया
कोई ख़्वाबों से मुझे दश्त-ए-बला तक ले गया
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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चश्म-ए-हैरत को त’अल्लुक़ की फ़ज़ा तक ले गया
कोई ख़्वाबों से मुझे दश्त-ए-बला तक ले गया