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ग़ज़ल
आज हम पर यूँ खुला गर्दिश-ए-अय्याम का दुख
जैसे खुलता है जनक-नंदिनी पे राम का दुख
आशु झा 'नक़्क़ाश'
ग़ज़ल
नई उम्रों की ख़ुद-मुख़्तारियों को कौन समझाए
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता