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ग़ज़ल
प्यार की यूँ हर बूँद जला दी मैं ने अपने सीने में
जैसे कोई जलती माचिस डाल दे पी कर बोतल में
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
ज़िंदा रहने की ख़्वाहिश में दम दम लौ दे उठता हूँ
मुझ में साँस रगड़ खाती है या माचिस की तीली है
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
वही करते हैं दावा आग नफ़रत की बुझाने का
कि जिन के हाथ में जलती हुई माचिस की तीली है
नीरज गोस्वामी
ग़ज़ल
कि आतिश में मोहब्बत की बदन उस का जले कैसे
गले लगता है माचिस की वो गीली तीलियाँ बन कर