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ग़ज़ल
इतनी देर में उजड़े दिल पर कितने महशर बीत गए
जितनी देर में तुझ को पा कर खोने का इम्कान हुआ
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
हैं 'शाद' ओ 'सफ़ी' शाइर या 'शौक़' ओ 'वफ़ा' 'हसरत'
फिर 'ज़ामिन' ओ 'महशर' हैं 'इक़बाल' भी 'वहशत' भी
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
लब-ए-साहिल समुंदर की फ़रावानी से मर जाऊँ
मुझे वो प्यास है शायद कि मैं पानी से मर जाऊँ
महशर आफ़रीदी
ग़ज़ल
'उज़्र-आफ़रीन-ए-जुर्म-ए-मोहब्बत है हुस्न-ए-दोस्त
महशर में 'उज़्र-ए-ताज़ा न पैदा करे कोई
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मिलेगी शैख़ को जन्नत, हमें दोज़ख़ अता होगा
बस इतनी बात है जिस के लिए महशर बपा होगा