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ग़ज़ल
किसी के छूट जाने का उसे क्यों ग़म नहीं होता
तिरा दिल है कि पत्थर है कभी जो नम नहीं होता
अब्दुल मन्नान समदी
ग़ज़ल
'मन्नान' कर रहा हूँ मैं अब दोस्तों को कम
हर रोज़ छोड़ता हूँ मैं दो-चार मतलबी
मन्नान क़दीर मन्नान
ग़ज़ल
बज़्म में वो बैठता है जब भी आगे सामने
मैं लरज़ उठता हूँ उस की हर अदा के सामने
अब्दुल मन्नान समदी
ग़ज़ल
मेरे घर से उस की यादों के मकीं जाते नहीं
छोड़ कर जैसे शजर अपनी ज़मीं जाते नहीं
अब्दुल मन्नान समदी
ग़ज़ल
चाहतें पाईं हैं 'मन्नान' वफ़ाओं के तुफ़ैल
जज़्बा-ए-इश्क़ को अय्यार नहीं होने दिया
मन्नान बिजनोरी
ग़ज़ल
ख़ून जब अश्क में ढलता है ग़ज़ल होती है
जब भी दिल रंग बदलता है ग़ज़ल होती है
अब्दुल मन्नान तरज़ी
ग़ज़ल
अभी तो साथ रहता है मिरी परछाइयाँ बन कर
बिछड़ने पर रहेगा वो मिरी तन्हाइयाँ बन कर
अब्दुल मन्नान समदी
ग़ज़ल
मुद्दआ'-ओ-आरज़ू शौक़-ए-तमन्ना आप हैं
किस को किस को मैं बताऊँ मेरे क्या क्या आप हैं