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ग़ज़ल
मजनून-ए-बे-ख़िरद ने दी जाँ ब-ना-उमीदी
लैला का देखते ही महमिल तड़प तड़प कर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
चंद रोज़ा है ये मय-ख़ाना-ए-हस्ती याँ तो
उम्र ग़फ़लत में न ऐ बे-ख़िरद-ओ-होश गुज़ार
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
ब-रंग-ए-बू-ए-ग़ुंचा उम्र इक ही रंग में गुज़रे
मयस्सर 'मीर'-साहिब गर दिल बे-मुद्दआ आवे
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ख़्वाब-ए-ग़फ़लत में हैं याँ सब तो अबस जागा 'मीर'
बे-ख़बर देखा उन्हें मैं जिन्हें आगाह सुना
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
चली ख़िरद की न कुछ आगही ने साथ दिया
रह-ए-जुनूँ में फ़क़त बे-ख़ुदी ने साथ दिया