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ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
मेरी गंग-ओ-जमन तहज़ीब की दुख़्तर है ये उर्दू
इसे मुस्लिम बनाने की ये साज़िश आम है साक़ी
अजय सहाब
ग़ज़ल
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई बरसों से हैं साथ रहते
भाई को फिर भाई से अब क्यों लड़ाया जा रहा है
गुरबीर छाबरा
ग़ज़ल
जूलियस नहीफ़ देहलवी
ग़ज़ल
मुस्लिम उस के होने की 'शरफ़' तदबीर बतलाओ
पड़ा है मुद्दतों से शीशा-ए-दिल चूर पहलू में