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ग़ज़ल
तुझ से दूरी दूरी कब थी पास और दूर तो धोका हैं
फ़र्क़ नहीं अनमोल रतन को खो कर फिर से पाने में
मीराजी
ग़ज़ल
वो हाथा-पाई हम ने की बिस्तर पे टूटे और गिरे
बाज़ू के दोनों नौ-रतन एक इस तरफ़ एक उस तरफ़
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
पल ही में गुज़र जाती है सुख-चैन की रातें
दुख-दर्द के दिन पल में गुज़र क्यों नहीं जाते