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ग़ज़ल
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
अनासिर जिस के थे मेहर-ओ-वफ़ा शफ़क़त अदब ग़ैरत
उन्हें जो भूल बैठा उस बशर की बात करते हैं
प्रमोद शर्मा असर
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
ये शफ़क़त उन के हक़ में न कोई दीवार बन जाए
बिगड़ जाते हैं ये बच्चे अगर टोका नहीं जाता
फ़ारूक़ ज़मन
ग़ज़ल
मैं ज़िद कर के कभी रोता तो आँसू पोंछ लेती थी
अभी रोता हूँ तो शफ़क़त-भरा दामन नहीं मिलता