aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "'taariq'-na.iim"
वो आइना था मैं तारिक़-'नईम' टूट के भीहज़ार अक्स बनाता गया बिखरते हुए
तारिक़-'नईम' रहने लगे हो मलूल सेकोई तुम्हारा ख़्वाब बिखर तो नहीं गया
कुछ अपना दर्द ही 'तारिक़'-नईम ऐसा थाबग़ैर मौसम-ए-गिर्या भी हम ग़ज़ब रोए
कहीं रुकेंगे तो तारिक़-'नईम' देखेंगेसफ़र में क्या कोई ज़ाद-ए-सफ़र बनाया जाए
क़फ़स-मिसाल थी 'तारिक़'-नईम दुनिया भीअसीर हो के गुज़ारी है ज़िंदगी हम ने
वो चाहता है कि 'तारिक़'-नईम तुझ को भीतमाम उम्र उसी के असर में रक्खा जाए
अजीब लोग हैं 'तारिक़-नईम' शहर के भीये तीर-ए-हिज्र दिलों में नियाम करते हैं
वही 'तारिक़'-नईम अब इस क़फ़स के बाब खोलेगाकिसी की आँख से जो इक इशारा होने वाला है
ऐसी तक़्सीम की सूरत निकल आई घर मेंधूप ने हिज्र की दीवार उठाई घर में
पोशीदा किसी ज़ात में पहले भी कहीं थामैं अर्ज़ ओ समावात में पहले भी कहीं था
मिरी निगाह किसी ज़ाविए पे ठहरे भीमैं देख सकता हूँ हद्द-ए-नज़र से आगे भी
ये ख़याल था कभी ख़्वाब में तुझे देखतेकभी ज़िंदगी की किताब में तुझे देखते
मुझे ज़िंदगी से ख़िराज ही नहीं मिल रहाअभी उस से मेरा मिज़ाज ही नहीं मिल रहा
आज किस ख़्वाब की ताबीर नज़र आई हैइक छनकती हुई ज़ंजीर नज़र आई है
जीना क्या है पिछ्ला क़र्ज़ उतार रहा हूँमैं तो उस की बाक़ी उम्र गुज़ार रहा हूँ
अब ये हंगामा-ए-दुनिया नहीं देखा जातारोज़ अपना ही तमाशा नहीं देखा जाता
क़फ़स से ख़ुद ही परिंदा रिहा किया मैं नेफिर उस के बाद ये सोचा कि क्या किया मैं ने
सारी तरतीब-ए-ज़मानी मिरी देखी हुई हैइस की तश्कील पुरानी मिरी देखी हुई है
इस रात किसी और क़लम-रौ में कहीं थातुम आए तो मैं अपने बदन ही में नहीं था
तुझ को इस तरह कहाँ छोड़ के जाना था हमेंवो तो इक अहद था और अहद निभाना था हमें
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