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ग़ज़ल
डर तो मुझे किस का है कि मैं कुछ नहीं कहता
पर हाल ये इफ़शा है कि मैं कुछ नहीं कहता
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
माने हों क्यूँ कि गिर्या-ए-ख़ूनीं के इश्क़ में
है रब्त-ए-ख़ास चश्म को इफ़शा-ए-राज़ से
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
हाँ इसी कम-बख़्त दिल ने कर दिया इफ़शा-ए-राज़
हाँ इसी कम-बख़्त दिल ने मुझ को रुस्वा कर दिया
हरी चंद अख़्तर
ग़ज़ल
जब तिरा ज़िक्र आ गया हम दफ़अतन चुप हो गए
वो छुपाया राज़-ए-दिल हम ने कि इफ़शा कर दिया
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
मुझे अहबाब की पुर्सिश की ग़ैरत मार डालेगी
क़यामत है अगर इफ़शा हुआ राज़-ए-अलम मेरा
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
किया इफ़्शा मोहब्बत को मिरी बेबाक नज़रों ने
ज़माने को ख़बर है मुझ से बस ग़ाफ़िल है तू ही तू
अमीता परसुराम मीता
ग़ज़ल
कोई ऐसा तरीक़ा बता तेरी आवाज़ को चूम लूँ
उफ़ ये तेरा ''फ़रीहा! मिरी जान'' कह कर बुलाना मुझे
फ़रीहा नक़वी
ग़ज़ल
चश्म-ए-नर्गिस जा-ए-शबनम ख़ून रोएगी नदीम
मैं ने जिस दिन गुलसिताँ का राज़ इफ़्शा कर दिया
एहसान दानिश
ग़ज़ल
तुम भी 'मजाज़' इंसान हो आख़िर लाख छुपाओ इश्क़ अपना
ये भेद मगर खुल जाएगा ये राज़ मगर इफ़शा होगा