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ग़ज़ल
यूँ धुआँ देने लगा है जिस्म और जाँ का अलाव
जैसे रग रग में रवाँ इक आतिश-ए-सय्याल है
अकबर हैदराबादी
ग़ज़ल
दिल का वीराना भी वही है तेरी तमन्ना भी है वही
ज़ुल्मत में रौशन है सितारा सहरा में जलता है अलाव