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ग़ज़ल
मैं राजा गिध हूँ न दश्त-ज़ादा न मास-ख़ोरा
मैं फिर भी बस्ती के मुर्दा-ख़ोरों में रह चुका हूँ
इमरान राहिब
ग़ज़ल
क्या हम ने ये निकाली तर्ज़-ए-ग़ज़ल निराली
कुछ गुल-फ़िशानियाँ हैं कुछ ख़ूँ-फ़िशानियाँ हैं
सरदार गंडा सिंह मशरिक़ी
ग़ज़ल
मुहम्मद तौसीफ़
ग़ज़ल
तिरी इक गर्दिश-ए-मिज़्गाँ से यूँ बे-ताब-ओ-ताक़त हूँ
न कह सकता हूँ कुछ गर कोई पूछे तू ने क्या पाया
बाक़र आगाह वेलोरी
ग़ज़ल
दिल क्या गया 'कलीम' गईं गुल-फ़िशानियाँ
उलझे हुए हैं दामन-ए-ख़ार-ए-वतन से हम