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ग़ज़ल
अज़ीज़ नबील
ग़ज़ल
अलख जमाए धूनी रमाए ध्यान लगाए रहते हैं
प्यार हमारा मस्लक है हम प्रेम-गुरु के चेले हैं
अफ़ज़ल परवेज़
ग़ज़ल
अबस है ज़ाहिदों को मय-कशी में उज़्र-ए-नादारी
गुरु रख लें उसी को जामा-ए-एहराम क्या होगा
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
'बाक़र' साहब महा कवी हो बड़े गुरु कहलाते हो
अपना दुख-सुख भूल गए तो किस का ख़ाल सँवारोगे
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
तिरी तस्वीर से रहमत बरसती है गुरु-नानक
करे तारीफ़ तेरी किस की हस्ती है गुरु-नानक
श्याम सुंदर लाल बर्क़
ग़ज़ल
मैं उस धरती का वासी हूँ जहाँ चेले क़लम कर के
गुरु के चरनों में अपना अँगूठा डाल देते हैं
मोहम्मद इश्तियाक़ आलम
ग़ज़ल
ये है मस्जिद वो है मंदिर ये है कलीसा वो गुरुद्वार
बाँट दिया कितने हिस्से में हम ने इबादत-ख़ाने को
ताबिश रिहान
ग़ज़ल
आग सीने में मोहब्बत की लगाते क्यों हैं
जब उन्हें छोड़ के जाना है तो आते क्यों हैं