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ग़ज़ल
बोसा देते हो अगर तुम मुझ को दो दो सब के दो
जीभ के दो सिर के दो रुख़्सार के दो सब के दो
सरदार गंडा सिंह मशरिक़ी
ग़ज़ल
जिन्हें मक़्सद में अपने कामयाबी हो नहीं पाती
वो जिद्द-ओ-जहद करते हैं मगर पैहम नहीं करते
मोहम्मद हाज़िम हस्सान
ग़ज़ल
जिन की जीभ के कुंडल में था नीश-ए-अक़रब का पैवंद
लिक्खा है उन बद-सुखनों की क़ौम पे अज़दर बरसे थे
मजीद अमजद
ग़ज़ल
न जिद्द-ओ-जहद-ए-मुसलसल ने सोज़-ओ-साज़-ए-हयात
मिसाल-ए-शज्र ज़मीं-बोस मैं जुमूद में था