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ग़ज़ल
जब सब के लब सिल जाएँगे हाथों से क़लम छिन जाएँगे
बातिल से लोहा लेने का एलान करेंगी ज़ंजीरें
हफ़ीज़ मेरठी
ग़ज़ल
दिल है दाग़ जिगर है टुकड़े आँसू सारे ख़ून हुए
लोहू पानी एक करे ये इश्क़-ए-लाला-अज़ाराँ है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
करूँ फ़रियाद रो रो यार को जब याद कर 'आजिज़'
दम इस्राफ़ील का लोहू हो बाँग-ए-सूर से टपके
आरिफ़ुद्दीन आजिज़
ग़ज़ल
कैसे तेशा-ओ-तेग़ बनाते कैसे ज़र्ब लगाते लोग
हथकड़ियाँ थीं सब के हाथों में जब लोहा गर्म हुआ