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ग़ज़ल
उन से हम से प्यार का रिश्ता ऐ दिल छोड़ो भूल चुको
वक़्त ने सब कुछ मेट दिया है अब क्या नक़्श उभारोगे
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ज़वाल हुस्न खिलवाता है मेवे की क़सम मुझ से
लगाया दाग़ ख़त ने आन कर सेब-ए-ज़क़न बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
बचपन के इस घर के सारे कमरे मालिया-मेट हुए
जिस में हम खेला करते थे वो दालान अभी बाक़ी है
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
निकाले लकड़ियों से तू ने जिस जिस लुत्फ़ के मेवे
कोई पेड़ों में ये पेड़े लगा सकता है क्या क़ुदरत
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
लज़्ज़तें जन्नत के मेवे की बहुत होंगी वहाँ
फिर ये मीठी गालियाँ ख़ूबाँ की खानी फिर कहाँ
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
जब ये मेवा हुस्न का रस रस पक कर होवेगा तय्यार
नाइका इस की क़ीमत का जब देखा चाहिए क्या लेगी
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
पहुँचे था अपना दस्त-ए-हवस जिस पे गाह गाह
वो शाख़-ए-मेवा-दार भी हैहात बढ़ गई
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
ज़क़न है सेब तो उन्नाब है लब-ए-शीरीं
नहीं है सर्व वो ख़ुश-क़द जो मेवा-दार न हो
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
क्या मज़े का है तिरे सेब-ए-ज़नख़दाँ का ख़ाल
लज़्ज़त-ए-मेवा-ए-फ़िरदौस है इस दाने में