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ग़ज़ल
हम को है मालूम सब रूदाद-ए-इल्म-ओ-फ़ल्सफ़ा
हाँ हर ईमान-ओ-यक़ीं वहम-ओ-गुमाँ बनता गया
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
शमीम करहानी
ग़ज़ल
अध-खुली तकिए पे होगी इल्म-ओ-हिकमत की किताब
वसवसों वहमों के तूफ़ानों में घर जाएँगे हम
ज़ेहरा निगाह
ग़ज़ल
ये दौर-ए-शम्स-ओ-क़मर ये फ़रोग़-ए-इल्म-ओ-हुनर
ज़मीन फिर भी तरसती है रौशनी के लिए
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
ग़ज़ल
कभी था नाज़ ज़माने को अपने हिन्द पे भी
पर अब उरूज वो इल्म-ओ-कमाल-ओ-फ़न में नहीं
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
हनीफ़ अख़गर
ग़ज़ल
क़लम होना था जिस के हाथ में थामे वो ख़ंजर है
कहीं इल्म-ओ-अदब का अपना रस्ता छोड़ जाता है