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ग़ज़ल
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
या-रब ये मक़ाम-ए-इश्क़ है क्या गो दीदा-ओ-दिल नाकाम नहीं
तस्कीन है और तस्कीन नहीं आराम है और आराम नहीं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो हो
ऐश-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
ग़ज़ल
ओबैदुर रहमान
ग़ज़ल
ये ऐश-ओ-तरब के मतवाले बे-कार की बातें करते हैं
पायल के ग़मों का इल्म नहीं झंकार की बातें करते हैं
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
न की सामान-ए-ऐश-ओ-जाह ने तदबीर वहशत की
हुआ जाम-ए-ज़मुर्रद भी मुझे दाग़-ए-पलंग आख़िर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ये ऐश-ओ-तरब के मतवाले बे-कार की बातें करते हैं
पायल के ग़मों का इल्म नहीं झंकार की बातें करते हैं
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
ऐश-ओ-इशरत करो हर वक़्त तुम 'इंशा-अल्लाह'
हुस्न चमकाए फिरो सब में परी-ज़ाद रहो
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
ग़म-ए-ऐश-ए-यास-ओ-उमीद का न असर हयात पे हो सका
मिरी रूह-ए-इश्क़ वही रही ये लिबास थे जो बदल गए
शायर लखनवी
ग़ज़ल
रब्त-ओ-ज़ब्त-ए-बाहमी के हाए वो राज़-ओ-नियाज़
आशिक़ाना हुस्न था और इश्क़ मअशूक़ाना था
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
है ज़माना इश्क़-ए-सलमा में गँवा दे ज़िंदगी
ये ज़माना फिर कहाँ ये ज़िंदगानी फिर कहाँ