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ग़ज़ल
अगर मेरी जबीन-ए-शौक़ वक़्फ़-ए-बंदगी होती
तो फिर महशूर उन के साथ अपनी ज़िंदगी होती
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची
ग़ज़ल
मैं अबू-बक्र-ओ-अली वाला हूँ 'यूनुस-तहसीन'
मुझ को मुल्ला के मसालिक से मिलाने का नहीं
यूनुस तहसीन
ग़ज़ल
तसव्वुरात में इन को बुला के देख लिया
ज़माने भर की नज़र से छुपा के देख लिया
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची
ग़ज़ल
हसरत-ए-दीद रही दीद का ख़्वाहाँ हो कर
दिल में रहते हैं मगर रहते हैं अरमाँ हो कर