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ग़ज़ल
सच जहाँ पा-बस्ता मुल्ज़िम के कटहरे में मिले
उस अदालत में सुनेगा अद्ल की तफ़्सीर कौन
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
ग़फ़लत-मता-ए-कफ़्फ़ा-ए-मीज़ान-ए-अद्ल हूँ
या रब हिसाब-ए-सख़्ती-ए-ख़्वाब-ए-गिराँ न पूछ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
उफ़ ये तूफ़ान-ए-नशात और मिरी तब'-ए-हज़ीं
आह ये यूरिश-ए-नाज़ और मैं मजरूह ओ अलील
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
ये क़त्ल-गाहें ये अद्ल-गाहें इन्हें भला किस तरह सराहें
ग़ुलाम आदिल नहीं रहेंगे ग़लत सज़ाएँ नहीं रहेंगी
हबीब जालिब
ग़ज़ल
फ़ैसले के लम्हे में अद्ल करना मुश्किल है
चश्म-दीद लोगों के क्यूँ बयाँ नहीं मिलते
नुज़हत अब्बासी
ग़ज़ल
है जहाँ में जिन से रौशन अद्ल के घर का चराग़
दम-ब-दम उन बादशाहान-ए-जहाँ को इश्क़ है