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ग़ज़ल
वाइ'ज़ कमाल-ए-तर्क से मिलती है याँ मुराद
दुनिया जो छोड़ दी है तो उक़्बा भी छोड़ दे
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
ग़ाफ़िलों के लुत्फ़ को काफ़ी है दुनियावी ख़ुशी
आक़िलों को बे-ग़म-ए-उक़्बा मज़ा मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
इनआ'म का उक़्बा के तो क्या पूछना लेकिन
दुनिया में भी ईमाँ का सिला मेरे लिए है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
ऐ 'ज़फ़र' कुछ हो सके तो फ़िक्र कर उक़्बा का तू
कर न दुनिया का तरद्दुद कार-ए-दुनिया सहल है
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
मशिय्यत खेलना ज़ेबा नहीं मेरी बसीरत से
उठा ले इन खिलौनों को ये दुनिया है वो उक़्बा है
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
यही हस्ती 'नुशूर' इक रोज़ है अंजाम-ए-हस्ती भी
यही दुनिया किसी मंज़िल पे उक़्बा हो के आती है
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
वाइज़-ए-सादा-लौह से कह दो छोड़े उक़्बा की बातें
इस दुनिया में क्या रक्खा है इस दुनिया में क्या होगा
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
ग़म-ए-उक़्बा ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-हस्ती की क़सम
और भी ग़म हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
अज़ीज़ वारसी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
फ़िक्र-ए-उक़्बा न करूँ तुझ में गिरफ़्तार रहूँ
शायरी तेरे लिए मैं सग-ए-दुनिया हो जाऊँ